प्रधानमंत्री जी भारत के नाम पत्र
शिक्षा-क्रांति, कॉज-१
सोलन, दिनांक
: 10.10. 2014
सेवा में,
माननीय प्रधानमंत्री जी,
भारत l
विषय : न. पा. सोलन में सफाई कर्मचारी की
नौकरी हेतु प्रार्थना-पत्र l
महोदय
जी,
सविनय निवेदन है कि मैं
समाज और प्रकृति का एक सच्चा सेवक हूँ l ‘समाज के निर्माण’ और ‘प्रकृति के संरक्षण’ में अपना योगदान देने हेतु,
मेरी शिक्षा व साहित्य-सेवा में अटूट आस्था है l शिक्षा का विकास, समाज का विकास l मैं, बतौर स्वयंसेवी, 12 वर्षों से विद्यार्थियों
को (कम्युनिकेशन स्किल्स के माध्यम से) समाज और प्रकृति की सेवा के गुर सिखा रहा
हूँ l अब मैं अपने ज्ञान को व्यवहारिकता की कसौटी पर कसना चाहता हूँ; मैं समाज और
प्रकृति की सेवा केवल अपने दिल और दिमाग से ही नहीं, अपितु अपने हाथों से भी करना
चाहता हूँ l मैं मेरे शहर सोलन में सफाई कर्मचारी की नौकरी करना चाहता
हूँ l उदेश्य स्पष्ट है : मैं ऐसा मेरे मानव-धर्म (प्रकृति-सेवा) को निभाने के
लिए करना चाहता हूँ l मैं मेरे राष्ट्र-धर्म का पालन करना चाहता हूँ l हमारे शहर में शासन व प्रशासन की लापरवाही के चलते सफाई कर्मचारियों की कमी और नाकामी की पूर्ति करना चाहता हूँ l आपके महान ‘स्वच्छ-भारत अभियान’
में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर, देश में शिक्षा-क्रांति का सूत्रपात करना चाहता
हूँ l एक शिक्षक होने के नाते, मैं भारतीय शिक्षा-प्रणाली
के सबसे बड़े दोष — इसमें ‘श्रम की गरिमा’ व अन्य जीवन-मूल्यों के पाठ नहीं पढाए
जाते— को मिटाना चाहता हूँ l यही वजह है कि हमारे पढ़े-लिखे लोगों द्वारा ‘भलाई’ के काम
को दरकिनार किया जाता है और ‘सफाई’ के काम को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता l वरना क्यों आज ‘स्वच्छता
की लक्ष्मी’ के इस देश में ‘सोने की चिड़िया’ कम और ‘कचरे और कंगाली के कौएं’ ज्यादा
मंडराते हुए दिखाई देते ? हर शिक्षित नागरिक स्वयं
से पूछे कि जिस देश की डाली-२ पर कभी ‘सोने की चिड़िया’ बसेरा करती थी, वहां अब
‘कंगाली के कौएं’ कहाँ से आये ? क्या, सदाचार और परमार्थ की इस धर्म-धरती पर, भ्रष्टाचार
और स्वार्थ के बीज, हम शिक्षित लोग हमारी शिक्षा के हाथों स्वयं नहीं बो रहे ?
माननीय प्रधान मंत्री जी, मेरी अपनी कोई महत्वाकांक्षा
नहीं है; न राजनैतिक, न साम्प्रदायिक और न ही आर्थिक l बस जीवन की एक ही अभिलाषा
है — भारत देश का आत्मिक-विकास होते देखना l देश की आध्यात्मिक-शक्ति को
जगाने के लिए अपनी युवा वय तो क्या, अपना पूरा जीवन समर्पण करना l अध्यात्म ही इस देश की ढाल
है, कवच और रक्षासूत्र है l अध्यात्म और भारत एक दुसरे
के पर्याय है l अध्यात्म में हमारे राष्ट्र का कल्याण निहित है l आधुनिक भारत की
विकास-गाथा विज्ञान और भौतिकता की भाषा से अवश्य लिखी जाये, लेकिन इस गाथा को
परिभाषित करने का जिम्मा तो अध्यात्म का ही है l हमारे भारतीय चिंतन में, शिक्षा में, और साहित्य में अध्यात्म
ने ही हमारी भारतीय संस्कृति और सभ्यता (सनातन) को चिरकाल से जीवित रखा है l भारत तब
तक न तो सही मायनों में उन्नति कर सकता है, और न ही अपने विश्व-गुरु होने के विगत
गौरव को हासिल कर सकता है, जब तक इसका अध्यात्म — जो अपने आत्मिक पद से गिर कर,
शरीर-प्रधान हो रहा है, पैसा-प्रधान हो रहा है — अपने उच्च आदर्शों पर पुनः विराजमान
नहीं हो जाता l राष्ट्र के सम्पूर्ण विकास के लिए अध्यात्म द्वारा राष्ट्र-चेतना को
जगाना अत्यावश्यक है l राष्ट्र का आध्यात्मिक-विकास तभी सम्भव है, यदि राष्ट्र की आत्मा
जागी हो, राष्ट्र की देह स्वच्छ हो, राष्ट्र का मन पवित्र हो, राष्ट्र के वचन में
सत्यता और राष्ट्र के कर्म में कल्याण की भावना हो l
आप (स्वच्छ-भारत अभियान के
सूत्रधार) से बेहतर यह बात कौन समझ सकता है कि स्वच्छ शरीर में ही ‘जागृत-आत्मा’
एवं ‘पवित्र-मन’ का वास होता है l राष्ट्र की आत्मा (अध्यात्म) का विकास कैसे हो
सकता है यदि इसका तन (रास्तें, सड़के, गलियां, नाले और नदियां) गंदा और
इसका मन (समाज) मैला व भ्रष्ट होगा ? अतः हमें हमारी
राष्ट्र-आत्मा की जागृति के लिए इसके तन को साफ़ और मन को पवित्र बनाना होगा l यह काम शिक्षा से बेहतर और
कौन कर सकता है?
गंदी गलियों व सड़कों को साफ़
करने के लिए
शिक्षा से अच्छा कोई झाडू
नहीं बन सकता ll
भ्रष्ट हुए समाज को पवित्र
बनाने के लिए
शिक्षा से बेहतर कोई गंगाजल
नहीं हो सकता ll
मैं अपने शिक्षित-दिमाग और शिक्षित-हाथों को मानव-कल्याण
के इस कार्य में लगाना चाहता हूँ l मुझे पूर्ण विश्वास है कि
आप राष्ट्र-हित में यह नौकरी मुझे अवश्य देंगे l शिक्षा-क्रांति के
‘स्वच्छता-सेवीयों’ की यथासम्भव सरकारी आर्थिक सहायता देने का एलान शीघ्र करेंगें
l
अनुभव : मई 2013 से अब तक
सोलन शहर में स्वच्छता-अभियान ( “एक रुपया दान, स्वच्छता अभियान, राष्ट्र निर्माण” ) करने का 18 महीनों
का
अनुभव l
2013 मई से अक्तूबर तक : प्रति माह एक बार
रैली और सार्वजनिक स्थानों की हाथों से सफाई l
अक्तूबर
2013 से अप्रैल 2014 तक : प्रति माह दो बार रैलियां और................ हाथों ..
अप्रैल
2014 से अगस्त तक : प्रति माह चार बार रैलियां और हाथों से ..............हाथों
.......
पिछले
दो महीनों से, मैं प्रति दिन इस स्वच्छता के कार्य के लिए 4 घंटे हर रोज दे रहा
हूँ l जिसमें डोर-टू- डोर अवेयरनेस विजिट, हर रोज़ कम से कम २० लोगों
को सड़क पर न थूकने और कचरा न फेंकने का आग्रह, और खुले में फेंकें जा रहे कचरे को
अपने हाथों से उसके सही स्थान तक पहुँचाना शामिल है l
सफलता : सोलन शहर के वार्ड न. 11 के लोग
गवाह है कि जो काम कमेटी के सफाई कर्मचारी सालों से नहीं कर सके, वह काम मैंने मेरी संस्था “शिक्षा-क्रांति” के स्वयं सेवकों के सहयोग से दो महीनों में कर दिखाया है l लोगों ने वार्ड 11
में कई अलग-२ जगहों पर कूड़ा-कचरा फेंकना बंद कर दिया है l
धन्यवाद l
आपका आभारी, सत्यन,
(अध्यक्ष) शिक्षा-क्रांति
(Global Education Sensitization Society, Regd. 292/2009)
C/O Satyan School of Languages, Kotla Nala, Solan,
(HP)-173212
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